ओम जय साई राम, जय साई राम, आदि ना अंत तुम्हारा, तुम्हें श्रद्धा नमन हमारा। तुम हो सत्य का दीप जलाने वाले, अज्ञान के अंधकार को मिटाने वाले। तेरे दर पे झुके, हर दिल को चैन मिला, तेरी रहमत ने हर गम को हर लिया। ओम जय साई राम, जय साई राम, आदि ना अंत तुम्हारा, तुम्हें श्रद्धा नमन हमारा। दीन-दुखियों के तुम हो सहारे, हर दुखिया को तु्मने गले से लगाए। तेरी मूरत में बसती है शांति, तेरे चरणों में है सुख की भ्रांति। ओम जय साई राम, जय साई राम, आदि ना अंत तुम्हारा, तुम्हें श्रद्धा नमन हमारा। तेरी महिमा अपरंपार, कौन समझे इसे, हर भक्त के दिल में, तू समाया इसी। तेरी कृपा से जीवन सुखमय हुआ, तेरे नाम से हर द्वार रौशन हुआ। ओम जय साई राम, जय साई राम, आदि ना अंत तुम्हारा, तुम्हें श्रद्धा नमन हमारा। तेरे दर्शन से मिट जाए अंधकार, तेरी कृपा से मिल जाए हर उपहार। तेरे चरणों में झुकते हैं हर दिन, तेरी लीला से भर जाते हैं गगन। ओम जय साई राम, जय साई राम, आदि ना अंत तुम्हारा, तुम्हें श्रद्धा नमन हमारा।
Hindu Bhajan
Hindi
Devotional and reverent; feelings of peace, gratitude, and spiritual fulfillment are expressed throughout the lyrics. There is a sense of surrender and admiration towards the divine figure, symbolizing hope and inner tranquility.
This song is typically performed in religious or spiritual gatherings, during worship ceremonies, or as part of a personal devotional practice. It can also be used in meditative contexts to promote peace and focus.
The song features repetitive chants (mantras), which is a common characteristic of bhajans, facilitating collective singing and engagement. The lyrics are structured in a poetic form, with rhythmic and melodic elements that are conducive to easy memorization and participation.
लातूर वाले मुकुंद बाबा, सदा मेरे साथ रहे, तेरी कृपा की छांव में, हर मुश्किल आसान रहे। तूने सबको अपनाया, बड़ा तेरा दरबार, तेरे चरणों में झुककर, हर दुखिया पाता प्यार। तेरे आशीष से खिलते, भक्तों के अरमान, लातूर वाले मुकुंद बाबा, तू है सबका भगवान। लातूर वाले मुकुंद बाबा, सदा मेरे साथ रहे, तेरी कृपा की छांव में, हर मुश्किल आसान रहे। तेरे नाम से रौशन, ये जग का हर कोना, तेरी महिमा सुनकर, हर मन है दीवाना। तेरी छवि है निर्मल, तेरी कृपा है भारी, तेरे बिना ये जीवन, अधूरी एक कहानी। लातूर वाले मुकुंद बाबा, सदा मेरे साथ रहे, तेरी कृपा की छांव में, हर मुश्किल आसान रहे। तेरी मूरत देख के, दिल को सुकून आता है, तेरी चरण रज से, जीवन नया हो जाता है। तेरी दया का सागर, हर दर्द मिटा देता, लातूर वाले मुकुंद बाबा, हर ग़म भुला देता। लातूर वाले मुकुंद बाबा, सदा मेरे साथ रहे, तेरी कृपा की छांव में, हर मुश्किल आसान रहे। तेरी सेवा में रहना, यही है मेरा सपना, तेरे बिना जीवन, लगता है अधूरा अपना। तू जो मेरे साथ है, डर कैसा संसार से, लातूर वाले मुकुंद बाबा, तेरा सहारा है हर राह पे। लातूर वाले मुकुंद बाबा, सदा मेरे साथ रहे, तेरी कृपा की छांव में, हर मुश्किल आसान रहे।
ओम जय साई राम, जय साई राम, आदि ना अंत तुम्हारा, तुम्हें श्रद्धा नमन हमारा। तुम हो सत्य का दीप जलाने वाले, अज्ञान के अंधकार को मिटाने वाले। तेरे दर पे झुके, हर दिल को चैन मिला, तेरी रहमत ने हर गम को हर लिया। ओम जय साई राम, जय साई राम, आदि ना अंत तुम्हारा, तुम्हें श्रद्धा नमन हमारा। दीन-दुखियों के तुम हो सहारे, हर दुखिया को तु्मने गले से लगाए। तेरी मूरत में बसती है शांति, तेरे चरणों में है सुख की भ्रांति। ओम जय साई राम, जय साई राम, आदि ना अंत तुम्हारा, तुम्हें श्रद्धा नमन हमारा। तेरी महिमा अपरंपार, कौन समझे इसे, हर भक्त के दिल में, तू समाया इसी। तेरी कृपा से जीवन सुखमय हुआ, तेरे नाम से हर द्वार रौशन हुआ। ओम जय साई राम, जय साई राम, आदि ना अंत तुम्हारा, तुम्हें श्रद्धा नमन हमारा। तेरे दर्शन से मिट जाए अंधकार, तेरी कृपा से मिल जाए हर उपहार। तेरे चरणों में झुकते हैं हर दिन, तेरी लीला से भर जाते हैं गगन। ओम जय साई राम, जय साई राम, आदि ना अंत तुम्हारा, तुम्हें श्रद्धा नमन हमारा।
आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की। जाके बल से गिरवर कांपे, रोग-दोष जाके निकट न झांके॥ आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥ अंजनि पुत्र महा बलदाई, संतन के प्रभु सदा सहाई। दे बीरा रघुनाथ पठाए, लंका जारि सिया सुधि लाए॥ आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥ लंका सो कोट समुद्र-सी खाई, जात पवनसुत बार न लाई। लंका जारि असुर संहारे, सीता रामजी के काज सवारे॥ आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥ पंचमुख रूप धरा धरि धामा, अंजनि मातु के पूत करामा। सुर-नर-मुनि जन आरती उतारें, जय जय जय हनुमान उचारे॥ आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥ कंचन थार कपूर लौ छाई, आरती करत अंजना माई। जो हनुमान जी की आरती गावे, बसिहैं राम-सियासुख पावे॥ आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की। जाके बल से गिरवर कांपे, रोग-दोष जाके निकट न झांके॥ आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥ अंजनि पुत्र महा बलदाई, संतन के प्रभु सदा सहाई। दे बीरा रघुनाथ पठाए, लंका जारि सिया सुधि लाए॥ आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥ लंका सो कोट समुद्र-सी खाई, जात पवनसुत बार न लाई। लंका जारि असुर संहारे, सीता रामजी के काज सवारे॥ आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥ पंचमुख रूप धरा धरि धामा, अंजनि मातु के पूत करामा। सुर-नर-मुनि जन आरती उतारें, जय जय जय हनुमान उचारे॥ आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥ कंचन थार कपूर लौ छाई, आरती करत अंजना माई। जो हनुमान जी की आरती गावे, बसिहैं राम-सियासुख पावे॥ आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥