Bhajan
Hindi
The song evokes feelings of devotion, tranquility, and reverence. It inspires a deep emotional connection to spirituality and a sense of peace.
This Bhajan can be used in religious ceremonies, meditation sessions, and spiritual gatherings. It is suitable for devotional settings where one seeks to connect with the divine.
The song typically employs simple melodic structures, often based on traditional ragas. It may feature repetitive motifs that enhance memorability, and the instrumentation may include harmonium, tabla, and flute, creating a soothing atmosphere.
श्री कृष्ण गोविंद, हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेव। श्री कृष्ण गोविंद, हरे मुरारी, जगत के रखवारे, दुःख हरने वाले। तेरे चरणों में ही सुख की सरिता, जग को तारने वाले। तेरी मुरली की मधुर तान सुन, हर मन मगन हो जाता। तेरी लीलाओं का वर्णन करें, हर भक्त धन्य हो जाता। श्री कृष्ण गोविंद, हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेव। गोकुल की गलियों में जिसने खेला, माखनचोर बन सबका दिल जीता। यमुना किनारे की लीला प्यारी, हर क्षण है अद्भुत और न्यारी। रास रचाया ब्रज की गोपियों संग, कान्हा, तेरा हर रूप है अनंग। तुम हो मुरारी, तुम हो वारी, संसार के हर कष्ट के निवारक। श्री कृष्ण गोविंद, हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेव। कुरुक्षेत्र में जब अर्जुन भटके, तुमने गीता का ज्ञान दिया। धर्म के मार्ग को सिखाने, हर युग में अवतार लिया। जो भी पुकारे तेरा नाम, सुख पाए वो हर एक इंसान। राधा संग तेरा प्यार अमर, भक्तों के जीवन का आधार। श्री कृष्ण गोविंद, हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेव। शरण में जो आए, वो तेरा हो जाए, पापी भी सुधरे, तेरा नाम जो गाए। कन्हैया, कान्हा, गिरधारी प्यारे, भक्तों के मन को तारण हारे। तेरा ही नाम, जीवन का सार, तेरा ही नाम, भवसागर पार। गोविंद बोलो, गोपाल बोलो, प्रभु के चरणों में सब कुछ छोड़ो। श्री कृष्ण गोविंद, हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेव।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।। रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।। महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।। कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा।। हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। कांधे मूंज जनेऊ साजै। संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बन्दन।। विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।। प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।। सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।। भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे।। लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।। रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।। सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।। सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।। जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।। तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।। तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना।। जुग सहस्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।। प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।। दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।। राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।। सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना।। आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।। भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।। नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।। संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।। सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा। और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।। चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।। साधु-संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।। अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।। राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।। तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम-जनम के दुख बिसरावै।। अन्तकाल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।। और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।। संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।। जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।। जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई।। जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।। तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।। रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।। महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।। कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा।। हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। कांधे मूंज जनेऊ साजै। संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बन्दन।। विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।। प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।। सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।। भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे।। लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।। रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।। सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।। सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।। जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।। तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।। तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना।। जुग सहस्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।। प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।। दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।। राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।। सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना।। आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।। भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।। नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।। संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।। सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा। और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।। चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।। साधु-संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।। अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।। राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।। तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम-जनम के दुख बिसरावै।। अन्तकाल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।। और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।। संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।। जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।। जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई।। जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।। तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
जग में फैला अंधकार, अधर्म ने ली थी अंगड़ाई, पाप ने जब धरा को डस लिया, तब आशा ने ली अंगड़ाई। हरि ने जन्म लिया मथुरा में, कंस का गर्व मिटाने को, श्रीकृष्ण के चरित्र का गान, भक्तजन आओ गाने को। चमके आकाश में देव तारे, जन्में नंद के लाला, यशोदा के आंगन खिली खुशियां, गोकुल का बन गया उजाला। कंस के बंदीगृह में जन्म लिया, वसुदेव ने पार लगाया, यमुना का जल भी झुक गया, जब हरि चरणों को अपनाया। माखन चुराकर हंसाए सभी को, ग्वाल-बाल संग रचाए खेल, पूतना का वध किया कान्हा ने, किया सभी का भय चुरेल। कालिया नाग पर नृत्य किया, यमुना को फिर से स्वच्छ किया, गोपियों संग रास रचाकर, प्रेम का पाठ पढ़ाया। मथुरा में जब पधारे कान्हा, कंस ने भेजे असुर अनेक, चाणूर-मुष्टिक संग मल्ल युद्ध, हरि ने जीता हर एक। कंस का गर्व चूर किया, सत्य और धर्म का मान बढ़ाया, धरती पर जब-जब अधर्म बढ़े, हरि ने न्याय का दीप जलाया। पांडवों के संग खड़े कृष्ण, धर्म की सेना का किया निर्माण, गीता का उपदेश दिया अर्जुन को, समझाया जीवन का महान ज्ञान। कुरुक्षेत्र में सारथी बनकर, धर्म-अधर्म का युद्ध कराया, कौरवों के पतन के संग, सत्य का परचम लहराया। द्वारका नगरी बसाई हरि ने, धन और सुख का किया विस्तार, लेकिन जब यदुवंशियों ने किया अधर्म, लीला का हुआ विस्तार। सुदर्शन ने जब छोड़ा उनका संग, वन में ली अंतिम सांस, पार किया इस जीवन का संग्राम, पूर्ण हुई हरि की लीला की प्यास। जन्म लिया तो अधर्म मिटाने, धर्म का मार्ग दिखाने को, छोड़ा जग को प्रेम सिखाकर, हरि ने किया अमर बनाने को। जय श्रीकृष्ण, जय मुरलीधर, भक्तजन हरदम गाते रहें
Song Title: గణేష్ భక్తి (Ganesh Bhakti) Genre: Devotional | Type: Traditional Bhajan [Intro] (Soft instrumental music with flute and tambura) ఓం గణేశాయ నమః, అనంత కృతీ వేదన, ఓం గణేశాయ నమః! [Verse 1] గణపతిః పండిత పంతుల, గణేశుడే పథ్యదారుల, సంపదల చేతన సుజనులకు, పార్తి పుడితే మరువనంటే! దుద్దిన వేలు పల్లకీ మీద, నెత్తుటి ములిక జులాయించి, సిరుల నడుక్కునే గణేష్, అష్ట విధా ఫలాలు భువిలోంచి! [Chorus] గణేశ నాథా! గణేశ నాథా! తుమే కడుతున్నావు ఈ పాపం! నమో నమః గణపతయే, ప్రపంచంలోనే అల్లరే! [Verse 2] బుద్ధి వినాయకుడు, సుభిద్ర శాంతి అందించే, కష్టాల కటాక్షాలు తొలగించి, మనసు ప్రశాంతిగా కదిలే! ఊరంతా నీ జెండా ఎగురుతూ, చిరంజీవులుగా బతుకుదాం, ప్రేమతో మనకో నిత్య స్వరం, గణేశుడే మా కృపాకరుణ! [Bridge] (Music slows down, with a gentle chant) ఓం గణేశాయ నమః, నీ పాదాల కింద పడి, సహాయమిస్తావనంటే, జీవితం పునరుద్ధరించు! [Chorus Repeat] గణేశ నాథా! గణేశ నాథా! తుమే కడుతున్నావు ఈ పాపం! నమో నమః గణపతయే, ప్రపంచంలోనే అల్లరే! [Outro] (Soft instrumental music fades out) ఓం గణేశాయ నమః, కృతజ్ఞతలతో మనసు ఉరిమి, గణేశుడే మా రక్షకుడే, ఈ పాటలో సంతోషమయ్యే!