একান্তে ভাসি

Song Created By @Naba Kumar With AI Singing

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একান্তে ভাসি
created by Naba Kumar
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একান্তে ভাসি
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音楽の詳細

歌詞テキスト

নামহীন একান্তে ভাসি,  
কী করবো না বুঝি,  
তোমার প্রেমে ডুব দিয়ে 
হারাইলাম সব পুঁজি।
চোখে ঘুম আসে না আর,  
শুধু মনের দূঃখ বারে,  
কূল হীন শ্যাওলা হয়ে ভাসি,  
তোমার মায়ার নদীর তীরে।
স্মৃতির ঢেউয়ে ভাঙে মন,  
কতো নতুন ব্যথা,  
কি করে সামলাই এ জীবন,  
শুধুই তোমার অপেক্ষা।
দূর আকাশে উড়লো আশা,  
কেও নাই তোর পর
একান্তে ডুবে আছি,  
ঘুনি শুধু প্রহর।  
এমন প্রেমে বাঁধা পড়ে,  
কী করবো বা কোথায় যাবো?  
তোমার ভালোবাসার ছায়ায়,  
মনে শান্তি কখন পাবো?
নব কুমার বলে, লোকে বলুক মন্দ 
তাতে কি আর হারিয়ে যায় 
রজনীগন্ধার সুগন্ধ ।

音楽スタイルの説明

Bengali folk,Indian classical, male voice

歌詞言語

Bengali

Emotional Analysis

The lyrics express a profound sense of longing, sorrow, and helplessness in love. The speaker feels adrift and lost, highlighting pain and a yearning for connection. There is a sense of melancholy but also hope in the memory of love, indicating a complex emotional landscape.

Application Scenarios

The song can be applied in scenarios of deep reflection or contemplation, particularly in romantic settings where feelings of longing and loss are predominant. It could be used in a romantic drama or a scene portraying inner turmoil related to love.

Technical Analysis

The song features traditional Bengali folk melodies and the emotional weight is conveyed through a male vocal performance. The lyrics employ vivid imagery and metaphors, such as 'floating in a nameless expanse' and 'the waves of memory breaking the heart,' which create depth and resonate with themes of nostalgia and despair. The structure likely follows typical folk patterns with a blend of Indian classical influences.

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जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल, उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले, लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी, निशा की गली में तिमिर राह भूले, खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग, ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में, कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी, मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी, कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी, चलेगा सदा नाश का खेल यूँ ही, भले ही दिवाली यहाँ रोज आए जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में, नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा, उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के, नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा, कटेंगे तभी यह अँधरे घिरे अब, स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।