या मुझे अफसर ए सहाना बनाया होता

Song Created By @Sapna With AI Singing

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या मुझे अफसर ए सहाना बनाया होता
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Détails de la musique

Paroles

या मुझे अफ़सर-ए-शाहाना बनाया होता
या मिरा ताज गदायाना बनाया होता
अपना दीवाना बनाया मुझे होता तू ने
क्यूँ ख़िरद-मंद बनाया न बनाया होता
ख़ाकसारी के लिए गरचे बनाया था मुझे
काश ख़ाक-ए-दर-ए-जानाना बनाया होता
नश्शा-ए-इश्क़ का गर ज़र्फ़ दिया था मुझ को
उम्र का तंग न पैमाना बनाया होता
दिल-ए-सद-चाक बनाया तो बला से लेकिन
ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं का तिरे शाना बनाया होता
सूफ़ियों के जो न था लायक़-ए-सोहबत तो मुझे
क़ाबिल-ए-जलसा-ए-रिंदाना बनाया होता
था जलाना ही अगर दूरी-ए-साक़ी से मुझे
तो चराग़-ए-दर-ए-मय-ख़ाना बनाया होता
शोला-ए-हुस्न चमन में न दिखाया उस ने
वर्ना बुलबुल को भी परवाना बनाया होता
रोज़ मामूरा-ए-दुनिया में ख़राबी है 'ज़फ़र'
ऐसी बस्ती को तो वीराना बनाया होता

Description du style musical

Classical Indian gazhal

Langue des paroles

Hindi

Emotional Analysis

The lyrics express a deep sense of longing, regret, and desire for a more passionate connection. There's a blend of melancholy and hope, showcasing the speaker's inner turmoil and yearning for a deeper understanding of love.

Application Scenarios

This song could be played during reflective moments or poetry recitals where deep emotions and the nuances of love and longing are explored. Suitable for gatherings focused on romance, heartbreak, or during a traditional music evening.

Technical Analysis

The lyrics use rich metaphors and classical themes common in ghazals. The structure is consistent with traditional poetic forms, employing rhyme and rhythm to convey emotion, and features various literary devices such as imagery and alliteration.

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या मुझे अफ़सर-ए-शाहाना बनाया होता या मिरा ताज गदायाना बनाया होता अपना दीवाना बनाया मुझे होता तू ने क्यूँ ख़िरद-मंद बनाया न बनाया होता ख़ाकसारी के लिए गरचे बनाया था मुझे काश ख़ाक-ए-दर-ए-जानाना बनाया होता नश्शा-ए-इश्क़ का गर ज़र्फ़ दिया था मुझ को उम्र का तंग न पैमाना बनाया होता दिल-ए-सद-चाक बनाया तो बला से लेकिन ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं का तिरे शाना बनाया होता सूफ़ियों के जो न था लायक़-ए-सोहबत तो मुझे क़ाबिल-ए-जलसा-ए-रिंदाना बनाया होता था जलाना ही अगर दूरी-ए-साक़ी से मुझे तो चराग़-ए-दर-ए-मय-ख़ाना बनाया होता शोला-ए-हुस्न चमन में न दिखाया उस ने वर्ना बुलबुल को भी परवाना बनाया होता रोज़ मामूरा-ए-दुनिया में ख़राबी है 'ज़फ़र' ऐसी बस्ती को तो वीराना बनाया होता